कोरोना काल में स्कूल फीस मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, UP बोर्ड, CBSE और ICSE बोर्ड व तमाम निजी स्कूलों को नोटिस

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#प्रयागराज :

कोरोना काल में स्कूल फीस मामला: अभिभावकों की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार, CBSE, ICSE, यूपी बोर्ड व तमाम निजी स्कूलों से मांगा जवाब I

निजी स्कूल/संस्थान सभी अनैतिक, अवैध और मनमानी गतिविधियों में लिप्त हैं; पूरे राज्य में स्कूली-बच्चों के आर्थिक रूप से बर्बाद और टूटे हुए माता-पिता से क्रूर और अमानवीय मुनाफाखोरी में लगे हुए हैं : शुल्क विनियमन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायलय में अभिभावकों की याचिका प्रदेश भर में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभिभावकों की दायर की गई जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, UP बोर्ड, CBSE और ICSE बोर्ड व तमाम निजी स्कूलों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुंशीवर नाथ भंडारी व जस्टिस राजेंद्र कुमार ने बुद्धवार को मुरादाबाद पैरेंट्स ऑफ़ आल स्कूल एसोसिएशन के सदस्यों (अनुज गुप्ता एवं अन्य) की याचिका पर पारित किया।

न्यायालय ने जब राज्य सरकार के वकील से पूछा कि निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ सरकार ने अब तक क्या किया? तो सरकारी वकील ने कहा कि हमने सभी बोर्डों और स्कूलों में शुल्क विनियमन के लिए अदेश जारी किया गया है, जिसमें ट्यूसन फीस के अलावा अन्य शुल्क लेने पर रोक है। इसपर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा कि ऐसे आदेश का क्या फायदा जब उसपर कोई अमल न हो। सरकार के आदेश के बाद भी फीस न जमा कर पाने के कारण बच्चों को स्कूलों से निकाला जा रहा है व आनलाइन क्लास से वंचित किया जा रहा है। अभिभावकों का उत्पीड़न हो रहा है। इसपर कोर्ट ने सरकारी वकील से कहा कि आपको जो कुछ भी कहना है एक सप्ताह में जवाब दाखिल करिए।

अधिवक्ता शाश्वत आनंद व अंकुर आज़ाद के माध्यम से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2020-2021 व संपूर्ण कोरोना काल के सत्र के लिए निजी स्कूल मनमानी और अत्यधिक स्कूल फीस वसूल करने के लिए अभिभावकों का शोषण व उत्पीड़न कर रहे हैं, और शुल्क के भुगतान हेतु एसएमएस और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से माता-पिता और बच्चों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है की कोई भी ऐसा स्कूल नहीं है जो की अनुचित शुल्क के लिए पीड़ित न कर रहा हो, और यहां तक कि देशव्यापी तालाबंदी के दौरान जिस अवधि के लिए स्कूल बंद थे और कोई भी सेवा प्रदान नहीं की गई थी, उस काल के लिए भी शुल्क वसूला जा रहा है।

याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018, निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के संचालन को विनियमित करने और ऐसे शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस की अनुचित मांगों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है। उक्त अधिनियम की धारा 8 में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस को विनियमित करने और उसके संबंध में छात्रों/अभिभावकों/अभिभावकों की शिकायतों को सुनने के लिए जिलाधिकारी कि अध्यक्षता में ‘जिला शुल्क नियामक समिति’ के गठन का प्रावधान है।

हालांकि, आज तक प्रदेश में निजी स्कूलों के शुल्क विनियमन व अभिभावकों की समस्याओं के निवारण हेतु शायद ही ऐसी कोई समिति बनाई गई है।

उक्त अधिनियम की धारा 4(3), जो कि दिनांक 17 जून, 2020 के एक अध्यादेश (अब संसोधन अधिनियम) के माध्यम से सम्मिलित कि गयी थी, में यह प्रदत्त है कि राज्य सरकार को मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा मौजूदा छात्रों और नए प्रवेशित छात्रों से ली जाने वाली फीस को जनहित में प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष, असाधारण या आकस्मिक परिस्थितियों जैसे दैवीय कृत्य, महामारी आदि, में विनियमित करने का सम्पूर्ण अधिकार है।

गौरतलब है कि बीते दिनों, राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर ये आदेश दिया है कि कोई भी निजी स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा और कोई फीस, जैसे एग्जाम फीस, स्पोर्ट्स, साइंस लैबोरेटरी, लाइब्रेरी, कंप्यूटर, एनुअल फंक्शन व ट्रांसपोर्ट फीस आदि, नहीं ले सकते, क्योंकि सभी स्कूल लंबे समय से शारीरिक उपस्थिति के लिए बंद हैं और परीक्षाएं भी फिजिकली नहीं हो रही हैं। इसपर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कोई भी निजी स्कूल राज्य सरकार के आदेश का पालन नहीं कर रहा है, और न ही राज्य सरकार आपने आदेश को सुचारु ढंग से लागू करवा पा रही है ।

याचिका में कहा गया है कि निजी स्कूल/संस्थान मुनाफाखोरी में चूर, बेलगाम, अनियंत्रित घोड़ों कि तरह हो गए हैं, और ऐसे निजी संस्थानों के खातों का राज्य सरकार द्वारा कोई ऑडिट भी नहीं किया जा रहा है, जो शिक्षा प्रदान करने जैसी धर्मार्थ व पवित्र प्रथा को एक अवैध गला-काट व्यवसाय के रूप में चला रहे हैं ।

ऐसे में याचिका में अभिभावकों द्वारा माननीय उच्च न्यायलय से अन्य मांगों के साथ साथ यह गुहार लगायी गयी है कि निजी स्कूलों में प्रभार्य शुल्क में कम से कम 50% की छूट दिया जाये। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच जुलाई को होगी।

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