सावन मास का महत्व

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गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है

सावन मास का हिन्दू दर्शन में महत्व

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हिंदू धर्म दर्शन में सावन को शिव के प्यारे मास के रूप में मनाया जाता है। सावन मास के शुरुआत से हीं प्रसिद्ध चतुर्मास की भी शुरुआत हो जाती है जिसमें मान्यता यह है कि भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। सृष्टि का संचालन शिव के माध्यम से होने लगता है ।समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने सृष्टि तथा मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था इस कारण तपन से उनका कंठ नीला पड़ गया था जिस कारण उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ा। शरीर के तपन को शांत करने के लिए ही हिंदुओं द्वारा श्रावण मास में जलाभिषेक करने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस कारण सावन अर्थात श्रावण मास में देवालयों में जलाभिषेक किया जाता है।

भगवान शिव

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कब मनाया जाता है श्रावण

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अंग्रेजी पोप ग्रेगरी कैलेंडर के अनुसार लगभग जुलाई के मध्य या अंत से अगस्त मास के मध्य अंत तक करीब 31 दिनों तक यह मास मनाया जाता है हिंदू दर्शन में उत्तर भारत के पंचांग के अनुसार श्रावण की शुरुआत होती है जोकि गुजरात एवं महाराष्ट्र के पंचांग से एक पखवारा यानी 15 दिन आगे रहता है सावन के महीने में बरसात होने के कारण हरियाली छाई रहती है तथा प्रकृति में जल तत्व की अधिकता हो जाती है। वैसे तो सावन मास में पूरे दिन का महत्व रहता है लेकिन सोमवार का विशेष महत्व रहता है।

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हिंदू के लिए श्रावण मास का महत्व

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सावन मास हिंदुओं का पवित्र मांस होता है इस कारण से इस महीने में लोग ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं तथा मांसाहार का त्याग कर देते हैं ।जनश्रुति के अनुसार द्वापर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा सोमवार व्रत को किया गया था। श्रावण मास के बारे में भगवान शिव स्वयं कहते हैं ।

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: ।
श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।

अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।

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भगवान शिव


श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है । “अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्” श्रावण मास में अकालमृत्यु दूर कर दीर्घायु की प्राप्ति के लिए तथा सभी व्याधियों को दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।

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सोमवार का महत्व और महत्वपूर्ण अनुष्ठान

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वैसे तो श्रावण मास में हर दिन पवित्र होता है लेकिन भगवान शिव को श्रावण मास में भी सोमवार का दिन अति प्रिय होता है इस कारण से हर मंदिर में सोमवार के दिन जलाभिषेक करने के लिए लाखों करोड़ों श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है सोमवार के बारे में भगवान शिव पुराण में लिखा गया है कि भगवान शिव बताते हैं कि
मत्स्वरुपो यतो वारस्तत: सोम इति स्मृति:
प्रदाता सर्वराज्यस्य श्रेष्ठश्चैव ततो हि से:
समस्तराज्यफलदो वृतकर्तुर्यतो हि से:

अर्थात सोमवार मेरा ही स्वरूप है अतः इसे सोम कहा गया है इसलिए यह समस्त राज्य का प्रदाता तथा श्रेष्ठ है व्रत करने वाले को यह संपूर्ण राज्य का फल देने वाला है ।इसके अलावा सावन मास में हिंदुओं के कई व्रत और अनुष्ठान मनाए जाते हैं जिनमें कामिका एकादशी श्रावण पुत्रदा एकादशी हरतालिका तीज रक्षाबंधन कृष्ण जन्माष्टमी नाग पंचमी प्रदोष व्रत इत्यादि आते हैं।

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