प्रयागराज :
श्री सुमंगलम में पूर्वसर सरकार्यवाह भैया जी जोशी का हुआ आगमन

जहां श्री वहां ईश्वर है
ईश्वर सब की चिंता करता है,
सिर्फ मंगलम से काम चल सकता था, ईश्वर है इसलिए मंगलम में सु भी है
श्री सुमंगलम सेवा है
सेवा धर्म है,
सेवा धर्म पर निरंतर चलने वाले को सेवा करना बताना मेरे बस की बात नहीं, रही बात पाथेय की तो पाथेय मार्ग में चलने की सूखी रोटी है ताकि मार्ग में कठिनाई ना आये, जो काफी चल चुके है उन्हें पाथेय की आवश्यक्ता नही है।
दाता दो प्रकार के है एक निस्वार्थ दाता दूसरा कंडीशनल दाता
कंडिशनल डोनर सेवा नही करते है। वह व्यापार करते है। ऐसे लोगों से घबराने की आवश्यकता नहीं सेवा कार्य करने वालों को अपनी सेवा निस्वार्थ बुद्धि से करते रहना चाहिए, ना देनी वालों के भी मन में देने की इच्छा पैदा कर देनी चाहिए।
सेवाकार्य करने वालो को भगनी नवेदित जैसा धैर्य रखना होगा,
भगिनी निवेदिता कोलकाता में एक बालिका विद्यालय चलाया करती थी एक बार एक संपन्न परिवार में जाकर विद्यालय की सहायता के लिए वह कुछ प्राप्त करना चाहती थी संपन्न परिवार के मालिक ने उन्हें दुतकरा और भगाया वह नहीं गई उन्होंने अपने विद्यालय के लिए दान का पुनः आग्रह किया, इस पर उस धनी संपन्न विक्की उनके गाल पर एक जोरदार तमाचा मारा इस पर भगिनी निवेदिता बड़े ही आगरा के साथ कहा आपने चाटा तो मार दिया अब विद्यालय के बच्चों के पढ़ने के लिए पुस्तकों की व्यवस्था कर दीजिए,
इस पर धनी संपन्न व्यक्ति के आंखों में आंसू आ गए और वह आत्मग्लानि से भर उठा, और से इस समय विद्यालय के विद्यार्थियों के लिए उसने बहुत कार्यकिया,
ऐसे ही श्री सुमंगलम के कार्यकर्ताओं को आग्रह पूर्वक समाज को सेवा के कार्य में लगाना चाहिए ।