नहीं रहे रामलला के भक्त श्री कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुखिया , वरिष्ठ भाजपा नेता और राजस्थान, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह का आज लंबी बिमारी के बाद हास्पीटल में निधन हो गया। एसजीपीजीआई की ओर से मंगलवार 20 जुलाई को सुबह 10:30 बजे जारी किए गए उनके स्वास्थ्य बुलेटिन में बताया गया था कि उनकी हालत अस्थिर बनी हुई है । उन्हें शनिवार शाम को सांस लेने में तकलीफ के बाद ऑक्सीजन थेरेपी दी जा रही थी। तकलीफ बढ़ने पर रविवार 18 जुलाई शाम से उन्हें नान इनवेसिव वेंटिलेटर पर रखा गया था।

नेफ्रोलॉजी, न्यूरोलॉजी , कार्डियोलॉजी और एडाक्रिनलॉजी विभाग की ओर से वरिष्ठ चिकित्सक उनके स्वास्थ्य पर एसजीपीजीआई के निदेशक श्री आर.के .धीमान के नेतृत्व में गहन नजर रखे हुए थे। विगत कुछ दिनों से उन्हें भाजपा के तमाम आलानेता कुशलक्षेम ले चुके थे। अभी तक उनसे मिलने और कुशल क्षेम लेने वाले नेताओं में बीजेपी के कद्दावर नेता केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इत्यादि ले चुके हैं तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोई बात मिलकर डॉक्टरों को निर्देश भी दे चुके हैं।
एक बार मुलाकात के दौरान कल्याण सिंह ने बताया भी था कि राम मंदिर के निर्माण के पहले मैं नहीं मर सकता और राम मंदिर के शिलान्यास की नींव पड़ भी चुकी है ।

भारतीय इतिहास में जब भी राम मंदिर की चर्चा होगी तब कल्याण सिंह की भूमिका को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। एक प्रखर वक्ता, विचारक, समाजसेवी, सफल जनप्रतिनिधि, लोधी समाज के एकमात्र ऐसे नेता जो पूरी हिंदू जाति के सर्वमान्य नेता बन चुके थे। कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को अलीगढ़ में हुआ था ।
श्री तेजपाल लोधी , पिता के घर में जन्में उस चंचल बालक के बारे में स्वयं 9 महीने अपने पेट में रखने वाली माता सीतादेवी में भी नहीं सोचा होगा कि यह बालक हिंदुओं तथा उत्तर प्रदेश के राजनीतिक पटल पर ऐसा अभुतपूर्व काम करेगा जिससे वह भारतीय राजनीति के देदीप्यमान नक्षत्र में सबसे चमकीला तारा बनकर हमेशा चमकता रहेगा। अभी तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में कल्याण सिंह जैसा कुशल प्रशासक किसी भी मुख्यमंत्री के लिए बन पाना संभव नहीं रहा और उनके कार्यों की आज भी तारीफ होती रहती है।
कल्याण सिंह के कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांतिकारी परिवर्तन लाया गया था तथा नकल अध्यादेश को संगे अपराध की श्रेणी में कानून बनाकर उन्होंने शिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार किया था जो तत्कालीन समय में पूरे भारतवर्ष के लिए एक नाजीर बन गई थी। राम मंदिर के विषय पर उनकी सहभागिता को पूरे देश ने देखा था । दो बार उत्तर प्रदेश के मुखिया (1991- 92 तथा 1997-1999) तथा राजस्थान (2014-2019)और हिमाचल प्रदेश (2015) के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह कई बार अतरौली के विधानसभा सदस्य रहे तथा कासगंज से विधायक और सांसद भी रहे।
बाबरी विध्वंस मामले के बाद उन्होंने मीडिया और लोगों को संबोधन करते हुए बताया था की ” किसी कोर्ट में केस चलाना है तो मेरे खिलाफ चलाओ किसी कमीशन ऑफ इंक्वायरी चलाना है तो मेरे खिलाफ चलाओ” अधिकारियों ने आदेश का पालन किया है ।क्या मैं गोली चला देता?
मैंने मीटिंग में स्पष्ट किया था कि गोली नहीं चलाउंगा नहीं चलाऊंगा नहीं चलाउंगा। उन्होंने सूचना देते हुए बताया कि जब केंद्र सरकार के गृह मंत्री श्री चौहान साहब का फोन गया और बताया कि मेरे पास सूचना है कि कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं तो मैंने बताया मेरे पास आपसे एक कदम आगे कि सूचना है कि कारसेवक गुंबद पर चढ़कर गुंबद तोड़ने लगे हैं। और मैं फिर कह रहा हूं कि ” मैं गोली नहीं चलाऊंगा नहीं चलाऊंगा नहीं चलाऊंगा”।
हालांकि भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता के रूप में जुड़े रहे कल्याण सिंह के जीवन में एक ऐसा भी समय आया जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के साथ विवाद होने के बाद 1999 में पार्टी छोड़ दी तथा अपने 77 वें जन्मदिन के अवसर पर जनक्रांति नामक पार्टी की घोषणा की थी तथा अपने पुत्र राजवीर सिंह को उसका अध्यक्ष भी बनाया था।
इसी बीच अपने धुर विरोधी नेता रहे मुलायम सिंह के साथ ही उन्होंने हाथ मिलाया था लेकिन 2004 में उन्होंने दुबारा अपनी मातृ पार्टी भारतीय जनता पार्टी को पुनः चुना और शामिल हो गए।