श्रद्धेय श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी – एक परिचय

- श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडी जी का जन्म 10 नवम्बर, 1920 दीपावली के दिन, महाराष्ट्र के वर्धा जिला के आर्वी ग्राम में हुआ था। दत्तोपंत जी के पिताजी श्री बापूराव दाजीबा ठेंगड़ी, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता थे, तथा माताजी श्रीमति जानकी देवी, एक आध्यात्मिक अभिरूची, करूणामूर्ति और भगवान दतात्रेय की परम भक्त थी। परिवार में एक छोटा भाई और एक छोटी बहन थी।
- दत्तोपंत जी का व्यक्तित्व, ‘‘रहन-सहन की सरलता, अध्ययन की व्यापकता, चिन्तन की गहराई, ध्येय के प्रति समर्पण, लक्ष्य की स्पष्टता, साधना का सातत्य और कार्य की सफलता का विश्वास, श्री ठेंगडी जी का व्यक्तित्व प्रकट करते है।’’
- इसी कालखंड में वर्ष 1949 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य, हिन्दुस्तान समाचार के संगठन मंत्री, 1951 से 1953, संगठन मंत्री, भारतीय जनसंघ, मध्य प्रदेश, 1956 से 1957 तक रहे।
- मा. ठेगडी जी ने लगभग 200 से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकें लिखी जिसमे में हिन्दू राष्ट्र चिन्तन, हिन्दू कला दृष्टि-संस्कार भारती क्यों, रा० स्व० संघ कार्यकर्ता, संकेतरेखा, अर्थ या अनर्थ, अलोक सामान्य चरित्र, आत्म-विलोपी आबाजी, आदर्श आत्मविलोपी मोरोपंत पिंगले, आपात स्थिति और बीएमएस, एकात्मा के पुजारी डा. बाबा साहेब अंबेडकर, औद्योगिक महासंघ, कम्यूनिज्म अपनी ही कसौटी पर, कांप्यूटरायजेशन, कार्यकर्ता एक मन स्थिति, तथा अग्रेजी में A Hindu View of Arts, Labour Policy Third way और मराठी में राष्ट्रपुरुष छत्रपती शिवराय, आदि सहित प्रमुख है।
- दिनांक 14 अक्टूबर 2004 को पुणे में श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडी जी को महानिर्वाण हुआ।
- श्रद्धेय दत्तोपंत जी की 11वीं तक की शिक्षा, आर्वी म्युनिशिपल हाई स्कूल में हुई। बाल्यकाल से ही उनकी मेधावी प्रतिभा तथा नेतृत्व क्षमता की चर्चा सब ओर थी। 15 वर्ष की अल्पायु में ही आप आर्वी तालुका की ‘‘वानर सेना’’ के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष म्युनिशिपल हाई स्कूल आर्वी के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। 1936 में नागपुर में ‘‘मौरिस कॉलेज में दाखिला लेकर अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। नागपुर के लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की।
- मौरिस कालेज में अध्ययन के दौरान वर्ष 1936-38 तक क्रांतिकारी संगठन ‘‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन’’ से जुड़े रहे। श्रद्धेय दत्तोपंत जी ठेंगडी अपने बाल्यकाल से ही संघ शाखा जाया करते थे। फिर भी अपने सहपाठी और मुख्य शिक्षक श्री मोरोपंत जी पिंगले के सानिध्य में दत्तोपंत जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ शिक्षा वर्गों का तृतीय वर्ष तक का शिक्षण क्रम पूरा किया। वर्ष 1936 से नागपुर में अध्ययनरत रहने माननीय मोरोपंत जी के सानिध्य के कारण दत्तोपंत जी को परम पूजनीय डॉक्टर जी को देखने, सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आगे चलकर परम पूजनीय श्री गुरूजी का अगाध स्नेह और सतत् मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
- दिनांक 22 मार्च 1942 को संघ के प्रचारक का चुनौती भरा दायित्व स्वीकार कर आप केरल प्रांत में संघ का विस्तार करने के लिए ‘‘कालीकट’’ पहुंचे। वर्ष 1942 से 1945 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचारक के नाते यशस्वी कार्य खड़ा किया और वे वर्ष 1945 से 1947 तक कलकत्ता में संघ के प्रचारक के नाते तथा वर्ष 1948 से 1949 तक बंगाल, असम के प्रांत प्रचारक का दायित्व का निर्वहन किया। इसी समय राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत विभाजन तथा पूज्य महात्मा जी की हत्या से उत्पन्न परिस्थितियों का बहाना बनाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया और देशभक्तों द्वारा अन्यायकारी प्रतिबंध के विरूद्ध देशव्यापी सत्याग्रह इसी बीच शुरू हुआ और जून माह में सरकार के साथ बातचीत का घटनाक्रम तेजी से बढ़ा और श्री वेंकटराम शास्त्री की मध्यस्थता में सरकार ने संघ पर लगा और गया प्रतिबंध वापिस लिया। मा. दत्तोपंत जी को बंगाल से वापिस बुला लिया गया और 9 जुलाई, 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की औपचारिक घोषणा हुई और दत्तोपंत जी को विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य व नागपुर विदर्भ के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई।
- वर्ष 1949 में ही परम पूज्य श्री गुरूजी ने मा. दत्तोपंत जी को मजदूर क्षेत्र का अध्ययन करने को कहा। इस प्रकार दत्तोपंत जी के जीवन में एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ। मजदूर आंदोलन मा. दत्तोपंत जी के लिए ईश्वर प्रदत कार्य था। विद्यार्थी परिषद के जन-जागरण कार्यक्रमों के दौरान कांग्रेस से संबंधित इंण्डिन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के प्रदेश अध्यक्ष श्री पी.वाय. देशपांडे जी संपर्क में आये। उसी का लाभ लेते हुए मा. दत्तोपंत जी ने इंटक में प्रवेश किया। अपनी प्रतिभा और संगठन कौशल के बल पर थोड़े समय में ही इंटक से संबंधित नौ यूनियनों ने मा. ठेंगड़ी जी को अपना पदाधिकारी बना दिया। अक्टूबर 1950 में श्री दत्तोपंत जी को इंटक की राष्ट्रीय परिषद का सदस्य बनाया गया। वे मध्य प्रदेश के इंटक के प्रदेश संगठन मंत्री चुने गये। ‘‘पूजनीय श्री गुरूजी का यह आग्रह था कि केवल इंटक की कार्य पद्धति जानना ही प्रर्याप्त नहीं है बल्कि कम्यूनिस्ट यूनियन्स और सोशलिस्ट यूनियन्स की कार्य पद्धति भी जाननी चाहिए।’’
- वर्ष 1952 से 1955 के काल में श्री दत्तोपंत जी कम्युनिस्ट प्रभावित ‘‘आल इण्डिया बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन’’ (AIBEA) के प्रांतीय संगठन मंत्री रहे। वर्ष 1954 से 1955 में आर.एम.एस. एम्पलाइज यूनियन के पोस्टल मजदूर संगठन के सेंट्रल सर्कल (अर्थात् आज का मध्य प्रदेश, विदर्भ और राजस्थान) के अध्यक्ष बने। इसी कालखंड में सन 1949 से 1951 तक श्री ठेंगड़ी जी ने कम्युनिज्म का गहराई से अध्ययन किया। कम्युनिज्म के तत्व ज्ञान और कम्युनिस्टों की कार्यपद्धति आदि विषयों पर पूज्य श्री गुरूजी से वे रात में घंटों तक विस्तृत चर्चा किया करते थे। पूज्य लोकमान्य तिलक की 100वीं जयन्ती के अवसर पर देश के अन्यान्य प्रांतों से आए हुए 35 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 23 जुलाई 1955 को भोपाल में भारतीय मजदूर संघ एक नाम से एक केंद्रीय श्रम संगठन की स्थापना की गई।
- सनातन धर्म के वैचारिक अधिष्ठान, आलौकिक संगठन कौशल्य, परिश्रम की पराकाष्ठा, अटल धयेयनिष्ठा, विजयी विश्वास और पूज्य श्री गुरूजी के सतत् मार्गदर्शन के बल पर दत्तोपंत जी ने मात्र तीन दशक में ही उस समय के सबसे बड़े संगठन इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) को पीछे छोड़ दिया। सन् 1989 में भारतीय मजदूर संघ की सदस्य संख्या 31 लाख थी, जो कम्यूनिस्ट पार्टियों से संबंध एटक (AITUC) तथा सीटू (CITU) की सम्मलित सदस्यता से भी अधिक थी। सन् 2002 में भारतीय मजदूर संघ 81 लाख सदस्यता के साथ भारत का विशालतम श्रम संगठन बन गया। वर्तमान में इस श्रम संगठन की कुल सदस्य संख्या लगभग 2 करोड़ है। इस समय भारतीय मजदूर संघ का कार्य उत्तर पूर्व के प्रदेशो त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल मेघालय में अपनी यूनियंस बना ली है और प्रभावी स्थित में है।
- हिन्दू जीवन मूल्यों के आधार पर प्रकृति से गैर-राजनैतिक और वैचारिक दृष्टि से प्रखर राष्ट्रवादी, स्वायत और स्वयंशासी संगठन भारतीय मजदूर संघ जन संगठन खड़ा किया। पूज्य श्री गुरूजी ने 1 नवंबर 1972 को ठाणे बैठक में कहा, ‘‘जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने सोचा कि मजदूर क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ स्वतंत्र रूप से काम करें और इसका संगठन दत्तोपंत ठेंगड़ी खड़ा करें तो यह काम उन पर सौंप दिया गया। परन्तु उन्होंने अकेले यह कार्य किया।
- पूज्य श्री गुरूजी और दत्तोपंत जी के संबंध कैसे थे? मैं माननीय पी.परमेश्वरन जी की साहित्यक भाषा का उपयोग करना चाहता हूं। श्री परमेश्वरन जी लिखते है, ‘‘श्री दत्तोपंत जी ठेंगड़ी, उन थोड़े लोगों में से थे, जो परम पूज्य श्री गुरूजी की मनोरचना को समझने में समर्थ थे। अगर परम पूज्य श्री गुरूजी, सनातन धर्म के हिमालय से निकलने वाली गंगोत्री थे, तो दत्तोपंत जी को उस पवित्र जल में गहरी डुबकियां लगाने का सुअवसर प्राप्त व्यक्तित्व थे।’’
- मा. ठेंगड़ी जी सन 1964 से 1976 तक दो बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गये। राज्यसभा के कार्यकाल के दौरान देश के सभी प्रमुख राजनैतिक नेताओं समाजवादियों से लेकर साम्यवादियों तक मा. दत्तोपंत जी के अत्यन्त व्यक्तिगत संबंध होने के कारण आपातकाल विरोधी आंदोलन में सभी का सहयोग और विश्वास सम्पादित करना सहज संभव हुआ। सन 1964 से 1976 तक राज्यसभा के सदस्य रहते हुए आपने राज्यसभा के अनेक महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। सन 1968 से 1970 तक आप राज्यसभा के उपाध्यक्ष मंडल के सदस्य रहे।
- सन 1965 से 1966 तक संसद की हाउस कमेटी के सदस्य रहे। सन 1968 से 1970 तक सार्वजनिक उद्योग समिति के सदस्य रहे। सन 1969 में लोकसभा अध्यक्ष श्री नीलम संजीव रेड्डी की अध्यक्षता में तथा राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल श्री बी.के. बेनर्जी के मंत्रीत्व में भारतीय संसद के शिष्ट मंडल का सोवियत रूस जाने का कार्यक्रम तय हुआ। उस समय श्री वी.वी. गिरी ने इस संसदीय प्रतिनिधि मंडल में जाने के लिए मा. दत्तोपंत जी का नाम प्रस्तावित किया ताकि यात्रा के दौरान मा. ठेगडी जी के आनुभवों का लाभ लिया जा सके। श्री वी.वी. गिरी जो स्वयं मजदूर नेता रहे, चाहते थे कि सोवियत रूस में औद्योगिक संबंधों का स्वरूप क्या है? इसका बारीकी से और निरपेक्ष भाव से अध्ययन करके सम्यक जानकारी प्राप्त हो, क्योंकि कुछ समय बाद श्री वी.वी. गिरी भी रूस दौरे पर जाने वाले थे। 16 दिनों की सोवियत रूस की यात्रा में उनके साथ कम्यूनिष्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री हीरेन मुखर्जी तथा फारवर्ड ब्लाक के श्री शिलभद्रयाजी प्रमुख थे। इस प्रतिनिध मंडल के साथ मा. ठेगडी जी 16 दिनों तक सोवियत रूस तथा हंगरी की यात्रा की और दोनों देशों के औद्योगिक संबंधों, ट्रेड यूनियनों पर गहन अध्ययन किया।
- रूस यात्रा मा. दत्तोपंती जी के लिए साम्यवाद के वास्तविक स्वरूप का बारीकी से अध्ययन करने का अपूर्व अवसर था। साम्यवादी विचारधारा का खोखलापन तथा साम्यवादी विचारधारा के अन्तर्विरोधों का प्रत्यक्ष अनुभव करने के बाद मा. दत्तोपंत जी ने अथाह आत्म-विश्वासपूर्वक राष्ट्र को आश्वस्त करते हुए कहा था कि, ‘‘साम्यवाद अपने अन्तर्विरोधों के कारण स्वतः समाप्त होने वाला है। साम्यवाद को समाप्त करने के लिए किसी को प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है।’’
- श्रम क्षेत्र में मा. ठेगडी जी के अनुभवों को जानने के लिए चीन ने उन्हें आमंत्रित किया और 3 अप्रैल से 19 अप्रैल 1985 को ऑल चायना फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स के निमंत्रण पर श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडी के नेतृत्व में भारतीय मजदूर संघ का प्रतिनिधि मंडल चीन यात्रा पर गया। प्रतिनिधि मंडल में श्री मनहर भाई मेहता, श्री रास बिहारी मैत्र, श्री वेणुगोपाल और श्री ओमप्रकाश अग्घी शामिल थे।
- मा. ठेगडी जी ने 3-4 मार्च 1979 में कोटा, राजस्थान में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय अधिवेशन का आयोजन कर किसानों के अखिल भारतीय संगठन की स्थापना की। ‘‘देश के हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेगें।’’ महापुरुषों के संकल्प सत् संकल्प होते है, और सत् संकल्प, भगवान पूरे करते है। सनातन हिन्दू धर्म के अधिष्ठान पर पूर्णतः गैर-राजनैतिक और प्रखर राष्ट्रवाद से प्रेरित देश का सबसे बड़ा, सबसे सक्षम, जन संगठन खड़ा हुआ।
- बाबा साहेब अम्बेडकर जन्म शताब्दी के अवसर पर पुणे में दिनांक 14 अप्रैल 1983 को सामाजिक समरसता मंच की स्थापना की। यह सुखद संयोग था कि इसी दिन प. पू. डाक्टर जी का जन्मदिन वर्ष प्रतिपदा भी थी। इसी कड़ी में दिनांक 16 अप्रैल 1991 को नागपुर में सर्वपंथ समादर मंच की स्थापना की।
- मा. ठेंगडी जी ने संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों की स्थापना की।
- डंकेल प्रस्तावों का व्यापक अध्ययन करने के पश्चात् मा. दत्तोपंत जी ने देश का आव्हान किया कि ‘‘डंकेल प्रस्ताव गुलामी का दस्तावेज है।’’ इस दूसरे स्वतंत्रता संग्राम को चलाने के लिए 22 नवंबर 1991 को नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की। उस बैठक में अखिल भारतीय स्वरूप की पांच संस्थाओं के प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित थे। जिसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सहकार भारती, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, भारतीय किसान संघ तथा भारतीय मजदूर संघ शामिल थे।
- 1995 में भोपाल में पर्यावरण मंच की स्थापना की। परम पूज्य गुरूजी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की परंपरा में मा. दत्तोपंत ठेंगडी जी ने सनातन धर्म के अधिष्ठान पर राष्ट्रवादी विचार प्रवाह को सुपरिभाषित करने का महान कार्य संपन्न किया।
- पू. श्री गुरुजी के भाष्यकार दत्तोपंत जी थे, जो भाष्यकार की क्षमताओं का भी वर्णन करते गए। उसका भी वर्णन करना चाहिए। लेकिन जैसे-जैसे दिन चले, काम का विस्तार होता गया। परिस्थितियों में बदलाव आया, इसलिए अनेक प्रकार के जो प्रश्न, खड़े होते गये, इन प्रश्नों को शास्त्रीय ढ़ंग से, संघ की अत्यन्त बुनियादी बातों से सुसंगत, अत्यन्त वैज्ञानिक दृष्टि से सम्मत ऐसी उसकी व्याख्या करना, दुनिया के सामने प्रस्तूत करना, समर्थ भाषा में प्रस्तूत करना, ऐसे एक महान भाष्यकार थे, श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी। “द ग्रेटेस्ट कॉमेन्टेटर ओफ संघ आयडियोलोजिकल डायमेन्सनस्” संघ के सारे विचार-विश्व को विकसित सर्व-स्वीकार्य बनाना। वे स्वयं में नए विचारों को प्रस्फुटित करने वाले थे।
- दत्तोपंत जी ने एक घटना बतायी थी, 1960 में अपने देश में गृहमंत्री श्री गुलजारी लाल नन्दा थे, उस समय एक बहुत बड़ा स्ट्राइक वामपंथी लोगों से प्रेरित हो गया और स्ट्राइक होने के बाद नुकसान इत्यादि होते है वह हो गया, इसलिए नन्दा जी बहुत नाराज हो गये और उन्होंने घोषणा की कि एक नया बिल लायेंगे, जिसमें यह स्पष्ट किया जायेगा की, कार्य न करने की माने। यह जो राइट है, इसको हम ले लेंगे। राइट टू स्ट्राइक यह नहीं रहना चाहिये, ऐसा उनका स्टेटमेंट था। उस समय एक दो दिन नागपुर में होने के कारण मा. ठेंगडी की पूज्य श्रीगुरुजी से मुलाकात हो गई। गुरुजी ने दत्तोपंत जी से पूछा कि यह जो नन्दा जी का स्टेटमेंट है, इसके बारे में बी.एम.एस. की क्या भूमिका है? तुम्हारा क्या स्टैण्ड है? दत्तोपंत जी ने कहा हमारा स्टैण्ड तो कुछ नहीं है, गुरुजी ने पूछा की वृतपत्र में तुमने अपना स्टैण्ड प्राप्त नहीं किया ? दत्तोपंत जी ने कहा कि हमको कौन पूछेगा, हम इतने छोटे है, नगण्य है, इसलिये हम दें तो क्या, नहीं दें तो क्या ? श्री गुरूजी ने एक सफ़ेद कागज मा. ठेंगडीजी को दिया और कहा मै जो बोल रहा हूँ उसे लिखो। श्री गुरूजी ने जैसा बोला श्री दत्तोपंत द्वारा लिख दिया गया। उसे टाइप कराकर मा. दत्तोपंत ठेगडी द्वारा अपने हस्ताक्षरों से उसे पत्र पत्रिकाओ, न्यूज़ एजेंसी को भेज दिया गया दूसरे दिन अनेक पत्रिकाओ समाचार पत्रों में मान्यवर ठेंगडीजी के विचारो को प्रमुखता से प्रचारित किया। मा. ठेंगडीजी के कार्यो विचारो को कुछ पृष्ठों में व्यक्त करना संभव नहीं है।
- मैं संघ का स्वयं सेवक वर्ष 1960 में बना और वर्ष 1970 में मा. ठेंगडी जी के सम्पर्क में आया। कुछ ही वर्षो में मुझे तत्कालीन कानपुर की भाग प्रचारक मा. अशोक सिंघल द्वारा भारतीय मजदूर संघ के कार्य में लगा दिया गया और इसके बाद मेरी निकटता मा. ठेंगडीजी से और अधिक हो गयी। मुझे भारतीय मजदूर संघ की प्रदेश कार्य समिति का सदस्य, अनेक ट्रेड यूनियन, ट्रेड फेडरेशन का अध्यक्ष, महामंत्री बनाया गया। विधि की शिक्षा पूर्ण करने के बाद 15-16 वर्षो तक मजदूर क्षेत्र में ही कार्यरत रहा। वर्ष 1988 तक मजदूर क्षेत्र में रहा। इस अवधि में मुझे मा. ठेंगडी जी का निरंतर उद्बोधन प्राप्त होता रहा। उसके उपरांत संगठन के लोगो की सहमति से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विधि व्यवसाय में लग गया। उनसे मेरा सम्बन्ध अंत तक रहा। मैं अपने जीवन में उनकी सहजता, सरलता अद्भुत व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ। मुझे मिल गेटो पर अनेक बार भाषण देने के लिए जाना पड़ा। मिल गेटो पर भाषण के उपरांत अपने कार्यकर्ताओ अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओ, द्वारा उनसे एक कप चाय लेने का आग्रह किया जाता रहा तो मा. ठेंगडी जी ने मना नहीं किया और सबको साथ लेकर मिल गेटो पर स्थित चाय स्टाल पर चले जाते। चाय पीने के बाद मजदूरो को धन्यवाद देते उन्होंने कभी किसी कर्मचारी अथवा पदाधिकारी को अपना पैर छूने नहीं दिया।
- जब में विधि व्यवसाय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आ गया तो मा. ठेंगडी जी एक कार्यक्रम के सिलसिले में वर्ष 2002 में प्रयागराज आये तो मेरे बच्चो की इच्छा हुई की मा. ठेंगडी जी मेरे आवास पर रात्रि को भोजन करे। मैंने उनसे आग्रह किया तो उन्होंने रात्रि भोजन की तुरंत सहमति दे दी। रात्रि में अपने कुछ कार्यकर्ताओ के साथ आये और भोजनोपरांत मेरी श्रीमतीजी और बच्चो को बुलाया और श्रीमतीजी को बहुत धन्यवाद दिया और कहा की बहुत अच्छा भोजन कराया। मेरी श्रीमतीजी ने उसी समय उन्हें एक कुर्ते का कपड़ा, एक धोती और एक गमछा भेंट किया। उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक ले लिया और कहा की अपने मेरी एक बड़ी समस्या हल कर दी और धोती एक से दो हो गयी। और आपने मुझे पर बड़ी कृपा की है। मेरी श्रीमतीजी मा. ठेंगडीजी की इन शब्दों से बहुत प्रभावित हुई और संघ के प्रति उनका आदर भाव और बढ़ गया और वे आज भी बातों बातों में श्रद्धेय ठेंगडीजी की सरलता की प्रशंसा करती है।
- सार्वजानिक जीवन में लगे कार्यकर्ताओ को मा. ठेंगडीजी की पुस्तको का अध्ययन करना चाहिए विशेष कर उनकी एक पुस्तक ‘’कार्यकर्ता’’ का पठन कर तदनुसार आचरण अपेक्षित है।

लेखक परिचय –
- भूपेन्द्र नाथ सिंह
- अधिवक्ता, उच्च न्यायालय इलाहाबाद
- 198, झूलेलाल नगर, लूकरगंज, प्रयागराज-211001
- दूरभाष – 941 521 4492
- ईमेल- bnsingh(at)gmail(dot)com