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आंवला (Indian gooseberry)
आंवला (Indian gooseberry) एक अत्यधिक उत्पादनशील प्रचुर पोषक तत्व वाला औषधीय गुण युक्त यूफोरबियासी कुल Euphorbiaceae Family)का पौधा है ।इसके फल विटामिन सी का मुख्य स्रोत है तथा शर्करा (sugar) एवं अन्य पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं ।यह भारत का ही देशज पौधा है। इसके फलों को ताजा एवं सुखाकर दोनों तरह से प्रयोग में लाया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं में आंवला का प्रमुख स्थान है जिसकी मांग आयुर्वेद में हमेशा से रही है।
आज की भागदौड़ की जिंदगी में लोग एलोपैथी दवाओं को छोड़ आयुर्वेदिक दवाओं से रोगों के निवारण में विश्वास रखने लगे हैं ।आंवला के गुणकारी होने के कारण इसकी मांग भी बढ़ने लगी है। इससे कई तरह की औषधियां जैसे त्रिफला चूर्ण ,चवनप्राश तथा पाचक चूर्ण बनाए जाते हैं। इसके अलावा इससे बालों के लिए टॉनिक (tonic),शैंपू (shampoo), चेहरे के लिए क्रीम (face cream) , दंतमंजन (toothpaste) आदि भी बनाए जाते हैं ।सूखे एवं अर्द्ध – अर्द्ध सूखे क्षेत्रों में बहुत सफल फलदार वृक्ष है। आंवला की व्यवसायिक प्रजातियों में नरेंद्र 7 ,चकैया एवं फ्रांसिस से अधिक लाभार्जन होता है।

आंवला (Indian gooseberry) के लिए जलवायु
आंवले की खेती सभी प्रकार की भूमि जैसे की रेतीली , छारीय एवं बंजर जहां पर दूसरे फलदार वृक्ष या अन्य फसलें उगाई जा सकती हैं वहां पर भी की जा सकती है । बलुई दोमट भूमि जो कैल्शियम (Calcium) युक्त हो और जिसमें उचित जल निकास हो सर्वोत्तम रहती है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय (tropical) जलवायु में भी आसानी से की जा सकती है। आंवले पर उसको शुष्क गर्म हवाओं तथा पाले का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है । छोटे पौधों को मई जून की गर्म हवाओं तथा सर्दियों में पाले से बचाना चाहिए। आंवले के परिपक्व पौधे पाले को सहन कर सकते हैं । ऐसे पौधों पर तापमान का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। गर्म जलवायु फूल आने में सहायक होती है ।आमतौर पर आंवले के वृक्ष चार-पांच वर्षों बाद पैदावार देना आरंभ करते हैं और कई वर्षों तक पैदावार देते हैं। बाग लगाते समय अन्य फलों की तुलना में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है ।
आंवला (Indian gooseberry)के लिए भूमि
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आंवला सभी प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है ।आंवले की खेती उपजाऊ एवं थोड़ी अम्लीय एवं लवणीय (acidic and saline) जिस का पीएच (pH) मान 6.5 से 9.5 में भी की जा सकती है। भारी मृदा एवं कम गहरे मृदा वाली भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती। बलुई भूमि के अतिरिक्त सभी प्रकार की भूमियों में आंवला की खेती की जा सकती है। आंवला का पौधा काफी कठोर होता है अतः रेतीली मिट्टी में ना उगाएं। जिन क्षेत्रों में कम वर्षा होती है वहां आसानी से उगाया जा सकता है।

आंवला (Indian gooseberry) का प्रवर्धन
आंवले का प्रवर्धन भेंट कलम एवं कलिकायन द्वारा किया जाता है। वानस्पतिक विधि से पौधे तैयार करने के लिए पहले फरवरी-मार्च में बीजों की उगाई करके मूलवृंत (root) तैयार कर लेनी चाहिए। इन मूलवृन्तों पर एक वर्ष उपरांत उन्नत किस्म का कलिकायन (budding) किया जाता है। कलिकायन विधि से फरवरी-मार्च तथा जून से सितंबर तक प्रवर्धन किया जा सकता है।
कृषि वानिकी में आंवला (Indian gooseberry) का महत्व
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आंवला (Indian gooseberry) गहरी जड़ों वाला छितरी पत्तियों वाला एक पर्णपाती वृक्ष है। साल के तीन चार माह में पेड़ पर पत्तियां नहीं रहती हैं तथा शेष माह में छितरी पत्तियां होने के कारण भूमि पर पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश उपलब्ध रहता है। परिणामत: इसके साथ फसली खेती के अनेक संभावनाएं हैं। फलों में अमरूद ,,करौंदा , सहजन एवं वेर I सब्जियों में लौकी, भिंडी, फूल गोभी धनिया तथा फूलों में ग्लेडियोलस एवं गेंदा एवं अन्य औषधि एवं सुगंधित पौधे आंवले के साथ उगाए जा सकते हैं। यह वर्षा ऋतु में धान के साथ शरद ऋतु में गेहूं के साथ अंत: सस्य के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको लगाने से भूमि की भौतिक दशा में सुधार होता है । आंवला के बाग में खरीफ (Kharif) के मौसम में मूंग , उड़द तथा मूंगफली और रवी (Rabi) के मौसम में मटर , मेथी , मसूर , चना व जायद (Zaid) के मौसम में लोबिया की फसलें लगाई जा सकती हैं।
आंवला (Indian gooseberry) के लिए गड्ढों की खुदाई
ऊसर भूमि में जून में 8 से 10 मीटर की दूरी पर एक से सवा मीटर के गड्ढे खोद लेना चाहिए यदि कड़ी परत अथवा कंकर की तह तो हो तो उसे खोद करके अलग कर देना चाहिए अन्यथा बाद में पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वर्षा ऋतु में इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए तथा एकत्र पानी को निकाल कर फेंक देना चाहिए । प्रत्येक गड्ढे में 40-50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद 15-20 किलोग्राम बालू ,8-10 किलोग्राम जिप्सम तथा ऑर्गेनिक खाद का मिश्रण लगभग 5 किलोग्राम भर देना चाहिए । भराई के 15 से 25 दिन बाद अभिक्रिया समाप्त होने पर ही पौधे का रोपण करना चाहिए। सामान्य भूमि में प्रत्येक गड्ढे में 30 से 40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद और 1 किलो नीम की सड़ी खाद का मिश्रण और ऊपर वाली मिट्टी मिलाकर भर देना चाहिए। गड्ढे जमीन की तह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई तक भरना चाहिए।
आंवला (Indian gooseberry) पौधा रोपण
गड्ढों में जुलाई से सितंबर के बीच में या उचित सिंचाई का प्रबंध होने पर जनवरी से मार्च के बीच में पौधरोपण का कार्य किया जाता है। रोपण कार्य जनवरी से फरवरी में करने पर अच्छी फसल मिलती है ।आंवले में स्वयं बंधता पाई जाती है अतः कम से कम दो किस्में अवश्य लगाते हैं जो एक दूसरे के लिए परागण करने का कार्य करती है। आंवला के बाग में पांच परागण किस्में लगाने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
पहले आंवले की खेती बीजू विधि से होती थी इसके अंतर्गत बीज की बुवाई करते हैं जिससे खेत में ही सीधे पौधे बन जाती है। वर्तमान में कलमी पौधे लगाकर आंवले की खेती की जाती है । कलमी पौध बनाने के लिए सबसे पहले खेत में आंवले की बीज की बुवाई करते हैं। जब खेती में पौधे में कलमें निकल आती हैं तो इन कलमों को प्लास्टिक की थैली से बांधकर पौध बना ली जाती है। इस पौधे को सीधे खेत में लगाया जाता है इसलिए इसे कलमी पौध कहा जाता है ।

आंवला (Indian gooseberry) का रख रखाव
आंवला में खाद एवं उर्वरक की मात्रा भूमि जलवायु किस्म व उत्पादकता पर आधारित है। लेकिन 10 किलोग्राम गोबर की खाद 100 ग्राम नाइट्रोजन 50 ग्राम फास्फोरस व 100 ग्राम पोटाश प्रति पौधा, 1 वर्ष की आयु वाले पौधों को देनी चाहिए। गोबर की खाद फास्फोरस की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्रा जनवरी फरवरी माह में देनी चाहिए। 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद 20 किलोग्राम नीम, 50 किलोग्राम अरंडी की खली इन शब्दों को अच्छी तरह से मिलाकर 2 किलो प्रति पौधा 6 से 12 साल के पौधों में, 1 से 5 साल तक पौधों के लिए 3 से 5 किलो प्रति पौधा साल में दो बार जनवरी-फरवरी तथा जुलाई माह में जब फलों का विकास हो रहा हो तो देना अत्यंत आवश्यक है। 12 साल के ऊपर के पौधों को उम्र के हिसाब से प्रति वर्ष आधा किलोग्राम के हिसाब से देना चाहिए जैसे कोई कोई पौधा 20 साल का है तो उसको 10 किलोग्राम खाद देनी चाहिए।
आंवला (Indian gooseberry) की सिंचाई
आंवले के बगीचे में पुष्पन के पश्चात 10- 20 दिन के अंतराल पर जून माह तक पानी देते रहना चाहिए। छारीय पानी का उपयोग लाभकारी नहीं रहता है । टपक सिंचाई (drip irrigation)से आंवला में अच्छी उपज होती है तथा खरपतवार भी कम उगते हैं। पौधों को शीत ऋतु में 15 से 25 दिन के अंतर पर तथा ग्रीष्म ऋतु में 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करते हैं। फूल आने के समय फरवरी-मार्च में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ।अप्रैल से जून तक सिंचाई का विशेष महत्व है।
आंवला (Indian gooseberry) की कटाई छटाई
मुख्य तने का 75 सेंटीमीटर तक बढ़ने दें इसके पश्चात पौधों को आकार देना चाहिए। अनावश्यक शाखाएं एवं सुखी रोग ग्रस्त शाखाएं समय-समय पर काट देना चाहिए। 3-4 स्वस्थ और मुख्य तनों को छोड़कर दिसंबर में छटनी कर दें। अच्छी उपज हेतु निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकालते रहते हैं। थाले के चारों ओर पुवाल बिछा देने से खरपतवार कम हो जाते हैं तथा नमी संरक्षित रहती है ।
आंवला (Indian gooseberry) कीट नियंत्रण
उन खाद्यान्नों में उद्यानों में जहां देखरेख कम होती है छाल भक्षक कीट का प्रकोप ज्यादा होता है । यह शाखा व तने में छेद कर उनके अंदर पहुंचकर हानि पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए प्रभावित भाग को खुरच कर साफ कर देते हैं तथा कीट द्वारा बनाए गए छिद्र में मिट्टी का तेल डालकर ऊपर से गीली मिट्टी लगा देते हैं ।गांठ बनाने वाला कीट जुलाई सितंबर माह में शाखा के शीर्ष भाग में छिद्र बना कर बैठ जाता है। प्रभावित शाखा का अग्रिम भाग बाहर की तरफ ऊपर गांठ बन जाती है ,उन्हें काट कर नष्ट कर देते हैं तथा वर्षा ऋतु में नीम की पत्ती का उबला पानी घोल का छिड़काव कर देते हैं।
मुलायम शाखाओं और पत्तियों का रस चूस कर माहू हानि पहुंचाता है। पौधे पर नीम के पत्ती का उबला हुआ पानी घोल का छिड़काव करने से यह कीट मर जाता है ।आंवले का बाग अनार के बाग से दूर लगाना अच्छा रहता है। आंवले पर अनार के तीतल फलों में छेद बनाकर नुकसान पहुंचाती है तथा प्रभावित फल गिरकर नष्ट हो जाते हैं । नियंत्रण के लिए नीम के पानी का छिड़काव करते हैं।

आंवला (Indian gooseberry) से रोग नियंत्रण
रतुआ रोग (rust disease) से पत्तियां और फल दोनों प्रभावित होते हैं और फलों पर भूरे धब्बे बन जाते तथा प्रभावित फल गिर जाते हैं ।इसकी रोकथाम के लिए उबला हुआ नीम की पत्ती का पानी पंप द्वारा छिड़काव करते हैं। फल सड़न का प्रकोप बाजार भेजते समय या भंडारण में होता है प्रभावित फलों पर भूरे रंग के धब्बे बनाते हैं जो फल को ढक लेते हैं। धब्बे पुराने पड़ने पर नीले रंग के हो जाते हैं । नियंत्रण के लिए खरोंच लगे फलों को बौरेक्स या सुहागा के या नमक के घोल से उपचारित करते हैं। नीम का पानी 25 ग्राम नीम की पत्ती तोड़कर कुचलकर पीसकर 50 लीटर पानी में पकाएं जब पानी 20 से 25 लीटर रह जाए तब उतार कर ठंडा कर सुरक्षित रख लें । आवश्यकता अनुसार किसी भी तरह का रोग हो 1 लीटर से लेकर 15 लीटर पानी में मिलाकर पंप द्वारा छिड़काव करें।
आंवला (Indian gooseberry) के उपज का निष्कर्षण एवं संचय
जब फलों का रंग कुछ सफेदी लिए हुए हरा हो जाता है तत्पश्चात फल तोड़ लेना चाहिए । प्रति वृक्ष 160 से 180 किलोग्राम फल प्राप्त हो जाते हैं ।फल नवंबर से लेकर फरवरी तक पकते रहते हैं। तुड़ाई उसी समय करते हैं जब छिलका का रंग हरा पर लिए हुए पीला हो जाए । आंवला की तुड़ाई हाथ से करना चाहिए जिससे फलों को खरोच ना आए। आंवला की उपज इसकी युक्त प्रजाति भूमि की स्थिति तथा पोषक तत्व के प्रबंध पर निर्भर करती है। परंतु सामान्य अवस्था में 10 से 12 वर्ष पुराने पेड़ से 150 से 200 किलोग्राम फल प्राप्त किए जाते हैं ।
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आंवला (Indian gooseberry) का भंडारण
कमरे के तापमान पर आंवला के फलों को 7 से 9 दिन तक भंडारित किया जा सकता है । आंवले के फल नमक के घोल में भंडारित किए जा सकते हैं।
आंवला (Indian gooseberry) की खेती से लाभ
अपने Area को Sanitize कैसे करवाए ?
आज भारत में आंवले की खेती 5 लाख हेक्टेयर में की जाती है। इसका कुल उत्पादन लगभग 1 से 2 लाख टन होता है। बीजू पौधा 6 से 8 साल बाद फल देना प्रारंभ करता है जबकि कलमी आंवले के पौधे से लगाने के 3 साल बाद फल मिलने लगते हैं। कलमी पौधे 10 से 12 साल बाद पूर्ण फल देने लगते हैं। इसका अच्छी तरह से रखरखाव होने पर 60 से 75 साल तक फल लगते रहते हैं। एक हेक्टेयर क्षेत्र में 9 गुणा 9 मीटर की दूरी रखने पर लगभग आंवले के 150 वृक्षों का रोपण पारंपरिक /नगदी फसलों के साथ किया जा सकता है । एक पूर्ण विकसित आंवला का वृक्ष किस्म के चयन के आधार पर 1से 3 कुंतल फल देता है। आंवले का बाजार मूल्य कम से कम ₹40 प्रति किलोग्राम मिल जाता है। इस प्रकार 1 हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 150 वृक्षों के रूपन द्वारा खेती के साथ कृषक लगभग 6 से 18 लाख रुपया प्रति वर्ष आंवला की बिक्री द्वारा प्राप्त कर सकता है ।
आंवला भारतीय मूल की महत्वपूर्ण फल है । आंवले की पैदावार नगदी फसलों के उत्पादन का विकल्प है। आज परंपरागत फसलों के उत्पादन के बजाय नकदी फसलों के उत्पादन में ज्यादा फायदा लिया जा सकता है । यही कारण है कि किसानों का रुझान इस तरफ बढ़ता जा रहा है ।अपने पोषक तत्व एवं औषधीय गुणों के कारण विश्व भर में लगातार इसकी मांग बढ़ती जा रही है।
आंवला से संबंधित विषय की जानकारी के लिए पारि-पुनर्स्थापन वन अनुसंधान केंद्र प्रयागराज की कृषि वैज्ञानिक डॉ अनुभा श्रीवास्तव तथा डॉ अनीता तोमर के शोध अनुसार यह रिपोर्ट तैयार की गई है जिससे पाठकों एवं कृषि बागवानी क्षेत्र से संबंधित रखने वाले किसानों को लाभ हो सके।

